Contents
- समस्या का सही समाधान नहीं कर्ज माफी
- असुरक्षित ट्रेनें
- अपनी भीतरी सेहत पर बहस करे न्यायपालिका
- खरीद नीति देगी उद्योगों को संबल
- जवाबदेही जरूरी
- आधी दुनिया के पूरे हक का वक्त
- बीएस-4 उत्सर्जन मानक पर कहां है बहस की गुंजाइश?
- सामाजिक सुरक्षा की कैसी हो व्यवस्था?
- गांधी की दृष्टि में गांव और किसान
- सहयोग का सफर
- इन पूर्वाग्रहों को और क्या नाम दें
समस्या का सही समाधान नहीं कर्ज माफी
सन्दर्भ:
कर्ज माफी किसान की समस्या का निदान नहीं है। आय बढ़ने के बावजूद किसान कर्ज के बोझ तले दबते जा रहे हैं।
असुरक्षित ट्रेनें
सन्दर्भ:
यूपी-बिहार बॉर्डर पर राजधानी एक्सप्रेस में लूट की घटना ने ट्रेनों की सुरक्षा व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
अपनी भीतरी सेहत पर बहस करे न्यायपालिका
सन्दर्भ:
शीर्ष न्यायपालिका को गहराई से विचार-विमर्श करना चाहिए कि यह असाधारण भरोसे की पूंजी और सामाजिक अनुबंध को कैसे संरक्षित रखा जाए, बढ़ाया जाए?
खरीद नीति देगी उद्योगों को संबल
सन्दर्भ:
केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय खरीद नीति बनाने का निर्णय लिया है। सरकार द्वारा की जा रही खरीद में घरेलू निर्माताओं को प्राथमिकता दी जाएगी।
जवाबदेही जरूरी
सन्दर्भ:
देश के मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर ने चुनाव घोषणापत्रों के एक बेहद महत्वपूर्ण पहलू की ओर पुन: देश का ध्यान आकृष्ट किया है।
आधी दुनिया के पूरे हक का वक्त
सन्दर्भ:
देश के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी में बहुत तेजी से वृद्धि हो रही है।
बीएस-4 उत्सर्जन मानक पर कहां है बहस की गुंजाइश?
सन्दर्भ:
वाहन निर्माता कंपनियों में भारत स्टेज-4 (बीएस-4) उत्सर्जन मानक वाली तकनीक अपनाने को लेकर इस कदर हायतौबा क्यों है? वे क्यों कह रही हैं कि उनके साथ भारी अन्याय हुआ है।
सामाजिक सुरक्षा की कैसी हो व्यवस्था?
सन्दर्भ:
सामाजिक सुरक्षा को लेकर मसौदा श्रम कानून एक महत्त्वाकांक्षी लेकिन आधा-अधूरा दस्तावेज है।
गांधी की दृष्टि में गांव और किसान
सन्दर्भ:
सत्याग्रह में जिस साहस को वे आवश्यक मानते थे, वह उन्हें शहरी लोगों में नहीं, बल्कि किसानों के जीवन में मूर्तिमान रूप में दिखाई पड़ता था।
सहयोग का सफर
सन्दर्भ:
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की भारत यात्रा और इस अवसर पर दोनों देशों के बीच हुएसमझौतों का दूरगामी महत्त्व है।
इन पूर्वाग्रहों को और क्या नाम दें
सन्दर्भ:
अफ्रीकी छात्रों पर हुए हालिया हमलों के पीछे भी यही मानसिकता काम कर रही थी। हमारे अवचेतन में उनके खिलाफ दुर्भावना कितनी गहरी है, इसका पता भारतीय मीडिया या पुलिस के दस्तावेजों से नहीं चल सकता।