Contents
- न्यायपालिका की जवाबदेही का सवाल
- हम अपनी सॉफ्ट पावर क्यों खोना चाहते हैं?
- भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए सहयोग के बुनियादी सिद्धांत
- जीएसटी: वादे और हकीकत
- वाजिब हक बनाम खोखली चिंताएं
- चंपारण में इस तरह भी देखे गए गांधी
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न्यायपालिका की जवाबदेही का सवाल
सन्दर्भ:
दुनिया में जितनी आजाद और स्वायत्त उच्चतर न्यायपालिका हमारी है उतनी कहीं और नहीं है। किसी भी देश में न्यायाधीश अपने को नियुक्त नहीं करते, लेकिन हमारे यहां ऐसा ही होता है।
हम अपनी सॉफ्ट पावर क्यों खोना चाहते हैं?
सन्दर्भ:
जीएसटीकी ऊंची दर पहले से ही मुश्किल में पड़ी भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को और गहरे संकट में डाल देगी
भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए सहयोग के बुनियादी सिद्धांत
सन्दर्भ:
भारत दूसरे देशों के साथ अपने ऊर्जा संबंधों को किस तरह से साधे कि उसके दीर्घावधि हितों के भी अनुकूल रहे? इसके लिए पांच सिद्धांत पथप्रदर्शक हो सकते हैं।
जीएसटी: वादे और हकीकत
सन्दर्भ:
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को अब तक का सबसे महत्त्वपूर्ण कर सुधार होने का पूरा श्रेय दिया जाना चाहिए। इसे लागू कराने की कवायद में जुटे हर व्यक्ति को श्रेय मिलना चाहिए। परंतु अभी इसका सहज तरीके से क्रियान्वयन बाकी है।
वाजिब हक बनाम खोखली चिंताएं
सन्दर्भ:
अकसर गरीबों और दलितों की चिंता में दुबले हुए जाते नेताओं की चिंताएं कितनी व्यर्थ हैं कि शहर भर का कूड़ा उठाने वाले और शहर को गंदगी से मुक्त करने वाले लोगों को समय पर उनके वाजिब हक भी न दिए जाएं। वेतन तक न मिले। कैसे कोई अपना घरबार चलाए! क्या कोई भी शहर इन कर्मियों के बिना साफ-सुथरा रह सकता है?
चंपारण में इस तरह भी देखे गए गांधी
सन्दर्भ:
गांधी की सक्रियता को लेकर जब बहुत से लोगों के मन में गुस्सा था, तब कई यूरोपीय उन्हें आदर्शवादी, कट्टर और क्रांतिकारी मान रहे थे।