Contents
- उपग्रह कूटनीति से बनेंगे एशिया में नए समीकरण
- डूबे कर्ज का मर्ज
- वित्त वर्ष में बदलाव के क्या हैं मायने?
- महत्त्वाकांक्षा, व्यवहार्यता और अक्षमता
- स्वच्छ वातावरण का सपना
- छोटे शहरों की बड़ी समस्याएं
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उपग्रह कूटनीति से बनेंगे एशिया में नए समीकरण
सन्दर्भ:
भारत ने उपग्रह के माध्यम से सार्क देशों की सघन मित्रमंडली बनाने का जो कदम उठाया है वह न सिर्फ उसकी सकारात्मक सोच को परिलक्षित करता है बल्कि नकारात्मक सोच वाले देशों के लिए एक संदेश भी है।
डूबे कर्ज का मर्ज
सन्दर्भ:
अब डिफॉल्टरों की खैर नहीं
वित्त वर्ष में बदलाव के क्या हैं मायने?
सन्दर्भ:
आजादी के पहले से ही वित्त वर्ष का समय बदले जाने की उठती रही है मांग।
महत्त्वाकांक्षा, व्यवहार्यता और अक्षमता
सन्दर्भ:
चीन ने जर्मनी के राइन प्रांत के डुइसबर्ग, ईरान की राजधानी तेहरान और यहां तक कि लंदन तक ट्रेन सेवा शुरू कर दी है। इसे चीन की ‘वन बेल्ट, वन रोड’ (ओबीओआर) योजना का शुरुआती प्रमाण माना जा सकता है।
स्वच्छ वातावरण का सपना
सन्दर्भ:
शहरों के अनेक आवासीय क्षेत्रों और मलिन बस्तियों में घरों के पास एकत्रित कूड़ा-करकट जलाने पर रोक नहीं लग पाई है। यह शहरों की दुर्दशा ही कही जाएगी कि आधुनिकता की चमचमाती रोशनी में भी कूड़ा-करकट के समुचित निस्तारण की व्यवस्था अधिकतर छोटे शहरों में आज तक नहीं हो सकी है।
छोटे शहरों की बड़ी समस्याएं
सन्दर्भ:
भले ही पिछले दो-ढाई दशक में भारत ने तेजी से तरक्की की है, मगर यहां स्थानीय (स्थान या क्षेत्रवार) असमानताएं भी काफी बढ़ी हैं।